चंबा शहर के नजदीक भगोत गांब में स्थित सरकारी कृषि फार्म पर 8 मई को कृषि विज्ञानं केंद्र द्वारा एक किसान मेले का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ यशबंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी सोलन के कुलपति, प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने की । इस किसान मेले में कृषि विभाग द्वारा किसानों को पोषक अनाजों से सम्बंधित जानकारी देने के लिए एक प्रदर्शनी लगाई गई । उप कृषि निदेशक, डॉ० कुलदीप धीमान ने बताया कि इस प्रदर्शनी में पोषक अनाजों की पहचान करबाने के लिए इनके बीज रखे थे। इन अनाजों के आहार से होने बाले लाभों के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए इस प्रदर्शनी में बिभिन्न बैनर व पोस्टर लगाये गये थे । उन्होंने कहा कि इस प्रदर्शनी के माध्यम से किसानों को यह समझाने का प्रयास किया गया कि पोषक अनाज क्या होते हैं, इन्हें पोषक अनाज क्यों कहते हैं और पोषक अनाजों को अपने आहार में शामिल करने से क्या लाभ होते हैं ।
इस किसान मेले में किसानों को संबोधित करते हुए डॉ० कुलदीप धीमान ने बताया कि खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने भारत देश के आग्रह पर वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets ) घोषित किया है । उन्होंने कहा कि बाजरा, ज्वार, रागी, कंगणी, कोदरा, स्वांक, कुटकी, हरी कंगणी और चीणा 9 अनाजों को मोटे अनाज, सिरिधान्य अनाज, मूल अनाज या पोषक अनाज बोलते हैं । इन अनाजों की खेती से जहाँ एक और पर्यावरण को लाभ मिलता है तो बहीं दूसरी ओर इन अनाजों का आहार, स्वस्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक है । उन्होंने कहा कि पोषक अनाजों को खाने से पाचन तन्त्र ठीक होता है तथा इन अनाजों का गलाईसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण यह अनाज हमारे शरीर में मधुमेह को नियंत्रित करते हैं । पोषक अनाजों में आयरन और कैल्शियम की अधिकता होने के कारण यह खून की कमी को पूरा करते हैं । इस अनाजों में उपस्थित विटामिन B3 शरीर में कोलेस्ट्रोल को भी कम करता है।
डॉ. धीमान ने कहा कि जिला चंबा में इन अनाजों की बिजाई के लिए मई-जून या वर्षा ऋतु के आरंभ का मोसम उपयुक्त होता है । बरसात के मोसम में इन फसलों की बढवार के लिए उचित मात्रा में वर्षा का जल मिल जाता है और सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है । उन्होंने कहा कि पोषक अनाजों की फसलें सभी प्रकार की मिटटी में पैदा हो जाती है । लेकिन मिटटी का 7.5-8 का पीएच मान इन फसलों के अति-उपयुक्त माना गया है । इनके बीज बहुत छोटे छोटे होते हैं इसलिए इन बीजों को 2.5- 3 सेंटीमीटर से अधिक गहरा नहीं बीजना चाहिए । मिटटी की जुताई करते समय धेले न बनें इसलिए सिंचाई के बाद खेत की मिटटी में सही बतर आने पर ही खेत की जुताई करें । खेत छायामुक्त होने चाहिए क्यूंकि यह फसलें छायामुक्त खेतों में अच्छी पैदावार देती हैं ।
उन्होंने कहा कि जिला के किसान कोदरा, रागी, कंगणी, और चीणा जैसे पोषक अनाजों की खेती पहले से ही छिट्टा विधि या मक्की की फसल के खेतों के किनारे पर लाइन में केरा लगा कर करते हैं । उन्होंने बताया कि यदि किसान पनीरी लगा कर रोपाई बिधि से खेती करें तो इस बिधि में पौधे से पौधे के बीच सही अंतर रखना आसान होता है और फसल के स्थापित होने तक खरपतबार भी कम आते हैं । इसलिए इस बिधि में बीज की मात्रा आधी लगती है इस बिधि में एक एकड़ भूमि के लिए 700-800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है । अधिक पैदावार लेने के लिए यह सबसे अच्छी बिधि है। इस बिधि में रोपाई के समय पंक्ति से पंक्ति के बीच में 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच में 30 सेंटीमीटर का अंतर रखें ।
डॉ. धीमान ने कहा कि समय के साथ धीरे-धीरे किसानों में इन फसलों के लिए रूचि कम होती जा रही है । इसलिए उन्होंने किसानों को सलाह दी कि बिमारियों से बचने के लिए इन फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, और यदि संभव हो तो इन फसलों की खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग न करें । किसान यह फसलें सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की बिधि से उगा सकते हैं । इस बिधि में खाद के स्थान पर घन जीवामृत का प्रयोग करें, बीज के उपचार के लिए बीजामृत और पोधों की अच्छी बढबार के लिए जीबामृत का प्रयोग करें । डॉ. धीमान ने उपस्थित सभी किसानों को बताया कि अब शहरों के लोग पोषक अनाजों को बहुत अधिक दामों में खरीद कर अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं । इसलिए सभी किसान इन अनाजों की खेती के अंतर्गत क्षेत्रफल को बढ़ाएं और अपने आहार में इस अनाजों को शामिल करें ताकि खुद भी और समाज भी स्वस्थ रहे । इस किसान मेले में औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अतिरिक्त , उद्यान विभाग व कृषि विभाग के विभन्न अधिकारियों तथा लगभग 300 किसानों ने भाग लिया
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